उय्यां तो ईं दुनियाँ में कुण कोई को कष्ट बँटावै छै?
कितरो भी प्यारो क्यूँ नै हो, जीं को दुख ज्यो ही पावै छै।
धन-दोलत होतो बँटवाल्याँ, तन मन को रोग बँटै कैयाँ?
पण, रोगी नै पूच्छ्याबो भी सुख कम कोनै पौंछावै छै।
मैं या ही सोच'र सदा घूमतो रूँ छूँ घर-घर, द्वार-द्वार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
वो तो कुण छै जीं सैं म्हारी कोई रिस्तादारी नै हो?
अर वो कुण छै जीं कै अण्डै कोई सी बेमारी नै हो?
वो भी कुण छै जीं कै कुण-सी बेमारी कद होबाळी छै,
याँ सब बाताँ की रती-रती की मनै जाणकारी नै हो?
छै दरज रजिस्टर मैं म्हारै सगळा रोगी तफसीलवार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
कुण को सुध लेबानै म्हारो खुद को पोंछबो जरूरी छै?
कुण की सुध लेबानै काफी घर मैं घींस्यो अर भूरी छै?
कुण की सुध पाँच नया पीसाँ को पोसकाट ले आवैलो?
कुण की सुध बिना लियाँ कोरी कर लेणी खाना-पूरी छै?
ईं तरैं सभी बेमाराँ का छै ‘अ’ ‘ब’ ‘स’ ‘द’ थोक च्यार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
‘अ’ मैं तो सारा मन्तरी'र सब सैकटरी सिरकारी छै,
पी.ए. सैं तैसिलदार तलक सब बड़ा-बड़ा अधिकारी छै,
सरजन, बैरिस्टर मजिस्ट्रेट, ऐमैले और ऐम.पी. सब,
गणमान नागरिक अड़ब-खड़बपति दान-बीर ब्योपारी छै।
राजा भी ‘अ’ मैं ही चा पण, अब छै वाँ को ‘द’ मैं सुमार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
अब 'ब' मैं म्हारा सारा ही वै बड़ा-बड़ा सम्बन्धी छै,
ज्यो साध-आठवाँ के मिस ही, न्है सदा चुकाता खंदी छै।
गणगोर्यां पर घेवर भेजै, सकरांत्याँ पर लाडू-फीणी,
डंका-फिरकल गुड़धाण्याँ की तो वाँ कै बँधगी बन्धी छै।
वाँ ही सैं प्यारा लागै छै, ये आठ बार अर नौ तिंवार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
‘स’ मैं वै आवै छै ज्याँ सैं छै म्हारी राम-राम कोरी,
रेल मैं, सड़क पर, मेळा मैं बँध गई दोसती की डोरी।
‘स’ मैं ही वै भी छै, ज्याँनै देख्याँ हो छै फाया दोरी,
क्यूँ दियाँ बिनाँ ज्याँ सैं मिलबो समझयो जावे छै कमजोरी।
वाँ ही कै जोडै गिण्याँ जाय छै जाट'र रैबारी-सुनार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
‘द’ मैं कुण-कुण छै ज्याँ नै तो थे खुद ही जाण गया होला,
बिधवा, अनाथ, नागा-भूखा, बेमार पिछाण गया होला?
याँका समञ्चार पूछबा नै जाबो तो कोसाँ दूर रह्यो,
छाया तक छूयाँ काया सैं कढ़ तुरत पिराण गया होला,
सुमरण सैं ही म्हारै खुद कै सी दे'र चढ्यावै छै बुखार!
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
‘ब’, ‘स’, ‘द’, तो वाँ के जुम्मै ज्यो छै जी कै लायक घर मैं,
‘अ’ नै मैं पैली ही सम्हाल कर लीनू खुदका अन्डर मैं।
कुण सैं सँव्वारै मिलणू छै? कुण सैं दोफैराँ बर पाछै?
कुण सै क्लब मैं, कुण सैं घर मैं, कुण सैं मिलणू छै दफ्तर मैं?
अंगेज डायरी मैं रै छै सब जगाँ, भगत, तारीख, बार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
कुण कै काईं बेमारी छै मैं सब की नबज पिछाणू छूँ,
वा मिटसी कसी दवाई सैं, ईं को भी नुसखो जाणू छूँ।
ज्यो म्हारा बस को रोग न हो, तो बैद डाक्दर नै दिखा'र,
मैं एक बाण सै दो सिकार कर ल्याबा मैं भी स्याणू छूँ।
मिटवा'र एक को रोग, दूसरा को चलवा द्यूँ रोजगार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
सेठाँ कै तो यो रोग छै'क सोना को सागर सुस न जाय,
ऐमैल्याँ नै न चैन जिद तक मन्त्री-मन्डल मैं घुस न जाय।
मन्त्र्याँ को रोग मयाद घटै, ज्यूँ-ज्यूँ ओठो बधतो जावै,
वै दिन-दिन सूख्याँ जाय छै'क पायोड़ी कुरस्याँ कुस न जाय।
याँको इलाज करबाळाँ पर ये दे तन-मन-धन सभी वार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
ज्यो दवा जीं भगत कन्नै हो ऊँकी ही रोगी हेरूँ छूँ,
वो नै लादै जिद तक ऊँकी मैं ओंळी माळा फेरूँ छूँ।
नेताँ नै वोट दिवाबा नै जनता पर भुरकी गेरूँ छूँ,
जनता नै नोट दिवाबा नै मैं मजिस्ट्रेट सैं मिलूँ जा'र।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥
फैलाँ नै पास कराबा नै मैं अध्यापक की सुध ल्यूँ छूँ,
ठालाँ नै काम दिवाबा नै मैं संचालक की सुध ल्यूँ छूँ।
पतराँ मैं चित्र छपाबा नै मैं सम्पादक की सुध ल्यूँ छूँ,
खुद जीवन सफळ कराबा नै मैं जन-नायक की सुध ल्यूँ छूँ।
यूँ रोग्याँ की सुध लेबा नै खायाँ बैठ्यो रूंछूँ उधार।
मैं गयो पूछबा समञ्चार॥