आगे बढ़ता

ऊंचा चढ़ता

पा'वण सारू मंजिल

उठावंता पांवडा

देख गै म्हानै

लाग रैया है चिरमराट

घणकरां लोगां रै

देख गै

म्हारी चाल

हु'गी और भी तेज।

स्रोत
  • सिरजक : रामकुमार भाम्भू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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