मा हुवै

टाबर री पैली गुरू

टाबर नै सिखावै

उठणो,

बैठणो

अर बोलणो

लोरी मा री

टाबर सारू

अणूतो प्रेम हुवै मा रो

जिण पाण टाबर

सोवै गै'री सुख री नींद!

मा रो आंचळ

टाबर नै राखै निरभै

रमतो, किळकोळिया करतो

बंध्यो रेवै

नेह री डोर सूं।

मा समझै

उणरी अठखेलियां

जिण भांत जाणती

मात जसोदा पालणै मांय

कान्हा री रग-रग नै।

मा रो लाड

मा री का'ण्यां

टाबर रै भविस रो

आधार हुवै...

टाबर वास्तै

मा आखी दुनिया हुवै,

जद टाबर रै मनां

जागै कोई इंछा...

...बोलणै सूं पै'लां

पूरदै सारी मन आयोड़ी!

मा री आंख्यां

अेक्स-रे सूं कमती थोड़ै हुवै.!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : रामजीलाल घोड़ेला 'भारती'
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