अेक मा माद्री!

नीं ही
बा फगत रूप-सुन्दरी
ही उण सूं बत्ती
सवाई गुणवंती!

भळै ही नीं हुयी
इण पेटै कीं चरचा
दीन्ही ही उण खुद 
अर कुन्ती जाम्या
पांचू पांडवां नै...

महताऊ जीवण-शिक्षा
रिस्तां री सौरम
संबंधां री अेकठ
भायां रै परेम-समरपण
अर आछै मिनखचारै साथै
उजळ जीवण-ब्यौहार री!

धन्य है, थारी सीख-सिखावण
धन्य है थूं 
माद्री मा!

थारी सूंपी इणी
सखरी जीवण-पूंजी पाण
हरमेस रैया हा सवाया
जीवण रै हरेक सीगै
पांचू पांडव
सौ कौरवां सूं ।


अेक मा गांधारी 

हाँ, हो गजब रौ धीजौ
अर थावस-समरपण
बा ही सांत-मूरत
किन्ही ही हरमेस
बात न्याव री!

नीं करता फरक
बगसी ई आसीस
हुवै चावै आपरौ
या कै परायौ...
धृतराष्ट्र री नार
जिण देखी-भोगी
परखी-समझी ही सगळी
राज री चाल-कुचाल
उथळ-पुथळ नै
आपरी अंतस आंख पाण!

अर फेर ई 
निभाई आपरी जुम्मेवारी
हर बार
न्याव री ताकड़ी तौल
इणी सांत मूरत रो
थावस-धीजौ
सै कीं
दे दीन्हौ हो जवाब
महाजुध रै छेकड़ में
जद जाय पूगी ही बा
रणखेतर में
अर दे दीन्हौ सराप
कुळ खातमै रौ
बरस छत्तीस पछै
कान्हा नै 
अेक मा गांधारी !

 
स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कमल रंगा
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