करुणा रो भंडार है मा,

ममता रो सिणगार है मा।

प्रेरणा रो हार है मा,

जीणै रो आधार है मा।

प्रेम रो समदर है मा,

त्याग री मूरत है मा।

आस री पांख है मा,

सभ्यता रो पाठ है मा।

टाबरां री पिछाण है मा,

हरेक दरद री दवा है मा।

स्रोत
  • सिरजक : भारती पुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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