नौ लख तारां थे अब चमको, सांझ पड़ी है अब घर जास्यां।

जद कद घोर अंधारौ होसी, भोर करण नै फेरूं आस्यां॥

थे पूनम रा चांद भलेरा, हुवै कमोदण थांसूं राजी।

पण कोयल म्हारै संग गासी, म्है तो भंवरां भरमास्यां॥

सुर बेसुर री सुध-बुध कोनीं, म्है गावण रो धरम निभास्यां।

फूलां महक ढुळण तो द्यो रे, रुत आई तो म्हैं ईं गास्यां॥

ल्यौ सगळौ आकास संभाळौ, च्यारूं कूंटां ही है थांरी।

पण अंतस री कंवळी कोरां, कंवळ खिलावण म्हैं ईं आस्यां॥

थे सागर खारा हो सारा, थारा सारा रतन रुखाळौ।

सार संजीवण इमरत धारां, बण भागीरथ म्हैं ईं लास्यां॥

थे आंधी तूफान कहीजौ, सगळा थां सूं थर थर कांपै।

धरती री प्यास बुझावण, गळ, ढुळ जळ म्हैं ही बरसास्यां॥

म्है बडबोला तो कोनीं पण, हर कोई सूं हेत होवै।

म्हारै मनड़ै री मूमल नैं, जियां रीझसी बियां रिझास्यां॥

जिण पिणघट पर प्रीत पावै उण घट पाणी पीणौ के?

मन रा मोद मनां में मुरझै, इस्यौ जमारौ जीणौ के?

बतळायां सूं बोलै कोनीं, काम पड़यां क्यारी काटै

ज्यांरे मन री मगजी फाटी, बीं नैं पाछी सीणी के?

आगळ ढकी जिकां रे मन री, पाप पड़त खुलता देख्या।

ओटी अगन राख रे औटै, बांरा तन बळता देख्या॥

जितरा कसणा काठा बांध्या, उतरी लाज ऊपर आई।

बांधी पाळ जका धारा पै, बांरा तन बळता देख्या॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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