लुगायां परूसती बगत जीमण

कित्ती खामचाई राखै

मोइण दियोड़ी रोट्यां

रोटी री त्रिभुजाकार सजावट

न्यारी बाटकी में दही

न्यारी बाटकी में फळ

लूणवाळी हटळी भळै

थोड़ीसीक कमी माथै

मरदां नै झाळ आय सकै

देगची में बाजतो कुड़छियो

नीवड़ैड़ो घी

रासनवाळै रो तकादो

लुगायां राख सकै काळजै में

पण

चेहरै पर मांग अर पूरती रा भाव

थोड़ो और लेस्यो कांई?

म्हैं तो अबार जीमी

भूख लागी कोनी

मजबूरी रै भाव माथै

‘सर्वे सुखिनः’ रो परदो लगावण में

लुगायां सै सूं बडी कारीगर

केई लोग त्रिया चरित्र री कैवत रै आसरै

खारज कर सकै लुगायां नै

फगत करणो पड़ै संतोस

खाली छाबड़ी अर

देगची में बाजतै कुड़छियै सूं

साच्याणी

भोट अटकळ सूं ढक लेवै लुगायां

गिरस्थी रै अंधारै नै, चिलकतै चांद दांई।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : कमल किशोर पीपलवा ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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