म्हे चेष्टा करां हां
सिर-पगां रौ जोर लगाय नै
उखाड़ देवां-
दिन रै आभै मांय रोप्योड़ी
सूरज री किरणां नै
जिकी मरजादा नै कायम राखै
अर जिकौ कीं जोवै-परखै
उणनै सांच भाखै!
म्हे लाग्योड़ा हां
अेड़ी-चोटी रौ बळ उजाळता
उखाड़ नाखां-
चांनणपख रै बाग-मांयलौ
चंदा-तणी चांनणी रौ घटतो-बधतो रूंख
जिणरी सोरम मांय रळवां है
सोरम इकलांण
जिकी सपनां नै पंपोळै
जागतां रै मांयळै नै टंटोळै!
पण आज तकात म्हारै सूं
उखड़यो न किणी अस्तित्व रौ बाळ
अर म्हे बावळा होयोड़ा
खुद रा घरां रा बारणा भूलग्या!
पराई पोळां जांण’र
कुसूंण मांडणा सरू कर दीन्या
क्यूं-क खुद रा पगल्या भुंई सूं उपड़ीजता
आपसरी री अटंग्यां मांय उळझतां
लड़थड़ीजता संभ नीं रैया!
आपूं-आप चालतौ रैवै बायरो
जिणसूं पांगरै, फूलै, फळापै
रुत-रुत रा गाछ-रूंख
आपै ई, उठ आवै, खैंखाट मचावती
घणघोर आंधी
बड़कणा डाळा तूट जावै।
पाधरी नाखीजै, गळयोड़ी पेड़यां!
म्हे आंध्यां रा बेटा कोनी
फेरूं उखाड़ण-पछाड़ण री म्हांरी हूंस
विचारां रै लाग्योड़ी दीवळ!
म्हैं सोचूं हूं नै
म्हे आज तकात को सोच सक्या नीं!
कुण जांणै! कद ऊगै-ऊखड़ीजै
अस्तित्व रा गाछ-रूंख
जंगी, केयी सदियां रा
बरसाती, केयी कागारोटी!
आवो! अेकला अेकला चालां
तरस खावां आप-आपरी!