माँ
म्हारी मावड़ी
थनैं कांई लिखूं?
म्हैं लिखणओ नीं चावूं कै म्हारो काट दियो
नाक
थारा लाडला
(पतो नीं थूं उणां नैं मानै या नीं)
जिकै सूं कुरळावै म्हारो डील,
म्हैं ओ भी लिखणी नीं चावूं
कै बै नीं मानै थारो अंश
थारै हांचळां रो नीं पीछाणै
दूध,
लजावै थारो
दूध।
म्हैं ओ भी लिखणो नीं चावूं
कै थारी परम्परा नैं जीर जीर
थारा गाभा उतारण
आमादा
थारा ‘लाडला’
म्हैं लिखूंलो अर थूं रोवैली समूळी रात
कै थारी पोथी रा पानड़ा फाड़ दिया
थारा ‘लाडला’
म्हैं लिखूंलो अर थारो जील
हुय जावैलो बे-डील!
थारा हांचळ सूख जावैला
हुय जावैला थूं मिट्टी
थनैं मिट्टी
ओळ्यूं
नीं बणण दूं
म्हारी मां।
पण म्हैं लिखूंलो जरूर
सेवट
रोवावण नीं सरसावण
रिंदरोही साफ कर’र
हळा’र
सरसूं-बाजरै री
लिखूंळा बात
सरसैला थूं
म्हारी
मां।