आ!

थोड़ा सुवारथी बणा

घड़ी स्यात

अर जीवां कीं सांसा

फगत आप सारूI

कै नाम तो अवस है आपणा

इण लाम्बी सी जिया जूण माथै

पण म्हूं अर थूं

कद जीवी जूण

आपरी इंछा मुजब ?

सांची बताई-

बरस-दर-बरस

निसरती जिनगाणी

ज्यूं टोपै-टोपै पाणी री

धोबै भरी कहाणी

जिण में सूंपिज्यो

तन्नै अर मन्नै

बस हंकारा भरणै रो कामI

आपां सुणता रैया

बांरै श्रीमुख सूं

भांत-भांत री बातां

जिकी बै परूसता रैया

रोटी जिम्यां रै पछै

डकार लेवण सारूI

ना बात आपणी,

ना कहाणी

बस हंकारो.!

कै कठई बै रूस नीं जावैI

इण अणचिंती चिंता मांय

आपांरा चैरा कद बुझ्या?

अर काळा केस कद होग्या धोळा?

ठाह नीं लाग्यो!

पण आज जद चाणचकै...

बगत रै काच साम्ही

हंकारो भरतां

पळक्यो थारों बुझ्योड़ो चै'रो

दीयै री बाती रै

छेकड़लै उजास दांई...

म्हारै अंतस घट

च्यानणो उतर्यो

जुगां पछै बापरी

अेक उजळी आस

हंकारै री ठौड़

हंकारो छोड़

सुवारथी बण जावण रीI

तो जीवां!

छेकड़लो उजास

फगत आप सारूI

स्रोत
  • सिरजक : हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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