कठै बची रै म्हारी पीछाण

कठै शेष रहई रै म्हारै अस्तित्व री धरती

खण्ड खण्ड होयै ग्यो है म्हारो स्तूप

म्हे करां प्रयास उण रै पुनः सर्जना रो

समग्रता में ही होवै सृजित विश्व चेतना रो सूत्र

सृष्टि चेतना रो मंत्र

अर शिवत्व रा छंद

सत्य रो सूर्य नीं आच्छादित होयै सकै तामस रै आंधेरा सूं

वो तो स्वयं सृष्टि है

उद्भासित होवै चेतना में

उद्घाटित होवै सनै सनै

मानव प्रज्ञा री दीठ में

व्यर्थ है पंथा री लड़ाई

व्यर्थ है विचार साम्प्रदायां री घेराबंदी

तो विध्वंस अर संघर्ष रा ही हेतु होवै

सर्जना अर समग्र शिव भावना रा नीं

म्हें देखां हां युग प्रक्रिया नै हमेस ही

परखां हां इतिहास रा पृष्ठां नै

नीं दीसै म्हांनै कठई प्रज्ञा दीठ री उजास

सुणां सर्वत्र अण रा क्रंदन

राज सत्तावां रा ऊंचा उठता प्रासाद

अर उणां नीचै चित्कारै अगण्य गण

मठाधीश नीं म्हे

अर नीं म्हे किणी विचार-संप्रदाय री गुफावां में कैद

मुक्त है म्हारो चिंतन अर म्हारै कवि री वाणी

क्षण क्षण संघर्ष

क्षण क्षण टूटै आकाश

प्रलय सो जुग यथार्थ

अर पाताल में धंसती सुसंस्कारां री धरती

जरूरी है सावचेती चेतना री अभिव्यक्ति

शिवत्व अर योग क्षेम री शाश्वत वाणी

बचावणी है धरती अर मीनख री प्रजाति

कद आवैलो दिग्भ्रमित मीनख अर मीनखपणो-

आपरै स्वर्णिम महलां में

अबारै तो क्षण-क्षण डूबै है म्हारो नियति सूर्य

आंधी गुफावां में

मुक्ति नियति सूर्य री म्हारो अहं अभिप्रेत

म्हारी शब्द चेतना अर्पित है इण नै

अर म्हारा स्वप्नां नै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : गोपाल जैन ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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