आम’स नती लखाती कविता

मन ना जेटला-जेटला

बंध हैं टूटें

मारा रोआ-रोआ

स्वर ने व्यंजन आपुरत उगे

अनुभव नी भट्टी मयं कटला अे

हां मारा राकोडो थअें

चित्त ने आंगणे केटला अे

उणियारा आवे ने जंय

तारे एक कविता नो दीवो बरे।

मारी कविता पूजा नी थारी नो दीवो नती

मारी कविता डेरी नो दीवो है

वायरा थी हवार-हांज लड़े

उटे ने पडे, झोला खाय

पण ओलवातो नती, रमझमतो बरे।

केम के आतम नी रसधार ने भेनी ने

ऊपर वारा थी वाते करी ने बरे है।

मारी कविता ना दीवा नो

कोणे रखवार नती, कोणे गोवार भी नती

मंदर ना दीवा ना मचलाहट माते

केटला हाथ ओट देवा उटे

पण मारा दीवा ने कोण हाके?

वायरा ने विजरिय थकी

खुद लडे है ने रातर दाड़ो बरे है।

ऐना उजवारा मय आवत-जात

मनक ने हासुकली वाट भारे

मारे कविता ने दीवे

वागड़ नू नाद अंगासे गाजे।

जेम जैम तपे मारो दीवोट

मोटक माते पडली केटली

हांकेरे टूटी ने बखराइ जंय

ने केटला हम्पा कूकड़ी खेलता चेहरा।

जंगल ना लना जादू थकी

नेकरी ने बारते आयी जंय।

तुलसी ना सोरा ने

मंदर ना दीवा थकी

वडतो है मारो कविता ने दीवो

केम के हाज ना भूल्या ने

घर नी वाट भारे है

लेहरात खेतर, ने गेरा वन मय वी

खोवेला हेड़ा काड़े है

मारी कविता नो एक दीवो

केटला ओलवेला दीवा पासा बारे है।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : नीता चौबीसा ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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