मां।

थूं देंवती आई है

सदियां सूं

पण अजै थाकी कोनी

कोनी आवण दे तूं

दुमनापणो

कोनी मानी हार

इण देण रै उपकार सूं।

दूखतो तो व्हैला

थारो डील

पीड़ अर कस्ट सूं

पण कोनी आवण दे थूं

थारै मूंडा माथै।

प्रसव पीड़ा

सहती-सहती

गाळ दी आखी जूण

इण दोघड़चींती मांय

कै कदास तो कोई जलमसी

म्हारी कूख सूं सपूत

जिको कर देवैला

घर-गरस्थी रो दाळद दूर।

अेक दो नीं,

थूं जणिया

आठ-आठ टाबर

पण थारी सुद

लेवणियो अेक

जोगो कोनी जलम्यो सपूत।

भखावटै-भखावटै

जाग’र करै दुवारी

चारो गैरै ध्रावां

चुगांवै बाछड़ा

करै बिलोवणो

चायपाय सबां नै

स्कूल जावण सारू।

कलेवो करा’र

टीफण करै त्यार

टाबरां रो।

दौड़-दौड़ काम

करतां-करतां

थारै पांती आवै

ओळबा, जइयां अर गाळियां।

कंतै री लापरवाही

घाळै थनै फोड़ा।

घर में कोई चीज

लावण री कदैई

कोनी करै गिनार

थारो बालम।

सब नै चाईजै बगतसर

रोटी अर लगावण।

पण कोठो

खाली व्है जणां

कीकर पूगै पाणी खेळी में।

आस-पड़ोस सूं

उधार लाय’र

थनै तो टंक टाळणो पड़ै।

मांगण नै आवण वाळा

मंगता नै आवण वाळा

मंगता नै

घर-गिरस्थी रो

धरम हुवै

हाथ उत्तर देवण रो

बात थूं

आछी तरियां जाणै।

बारस, अमावस

पूनम नै महाराज नै

काची रसोई देवण रो धरम

थासूं अछांनो कोनी।

पामणा आयां

घर सारू

पामणा री खातर करणी

पण कदै-कदैई

पामणा सारू

घर नै बिसराय

मिजमान रो धरम

निभावणो पड़ै थनै

सब रो ध्यान राखतां-राखतां

थूं भूल जावै

खुद रो ध्याना

सासू-सुसरै री सेवा

नणदल रा नखरा

जेठाणी रो जोर भारी

पड़ै थारै माथै।

मां!

थूं कांई-कांई

कोनी करै सहन

आणै-टाणै, सगाई-ब्यांव में

आयां घर में

रात-दिन

तनै कोढो करणो पड़ै।

टाणो सुधरियां

जस लोगां नै,

कीं कसर रैय जावै तो

भूंड रो ठीकरो

थारै माथै फोड़ै सगळा।

आमद कम अर खरच इधक

व्हैणा सूं करजो तो

व्हैणो सूं करजो

व्हैणो लाजमी।

आयै दिन कंत री करड़ावण

मौसा थारै सारू त्यार रैवै

लापरवाही करै दूजा

अर अळदो आवै थारै ऊपर

क्यूंकै थूं ईज है

सगळां नै परोटण वाळी।

करतां-करतां काम

कसर काढण में

कोनी रैवै लारै कोई

मां!

कांई थारै भाग में

ईज लिखियो भगवान?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : लक्ष्मणदान कविया ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
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