रेत!

बाळपणै मांय

बिरखा पछै

म्हारी बाखळ

मंढता हा म्हे

गोळ-गोळ लाडू थांरा।

पुरसता हा आपोआप

आकड़ै रा पत्तां सूं सिरजी थाळी मांय।

जीमता हा घणै चाव सूं।

कोरी रेत मांय

हथाळी फेर

सिरज लीनी ही सोवणी पाटी

बरतो बणी ही आंगळी म्हारी

अर वठै मांडियो हो पैलपोत म्हैं

कविता रो ‘क’।

घोचा रोप-रोप

निपजाई ही साख

पग रै पंजै माथै

थाप-थाप

मांडिया हा गोगा

रचियो हो अेक पूरमपूर घर।

रेत!

थूं बेकळा,

पण सिखाई म्हांनै

सगळी कळावां

रांमत री आधार थूं!

स्रोत
  • सिरजक : सत्यनारायण सोनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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