क्यूँ गरजां करो

क्यूँ माथै चढ़ाओ।

माथे चढग्यो तो

उतारणो ओखो हुय जासी।

म्हारी मानो—

जावण द्यो

जठै जावै

पतियारो राखो

पाछो अठे'ई आसी

कठै ढोई है

घर सूं बारै।

स्रोत
  • सिरजक : नवनीत पाण्डे ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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