इण धरती रै इण खूंणै सूं

उण छोर तांई

मिनख बसै आपरी सींव तांई

वै जियाजूंण रा

सगळा रंग रचावै

आवै अर जावै

सांसां रा सोवणा गीत गावै।

जगती रै हरेक मोड़ माथै

मिल जावै मिनख

कीं सैंधा, की असैंधा

मिलै अर मुळकै

मिनखपणै रौ हेत जतावै

सेंध-पिछांण बणावै

अर व्है जावै म्हारै साथै।

सात समदरां पार ऊभी म्हैं

हरमेस बंतल करूं

वानै देखूं अर परखूं,

असैंधा नै सैंधा करूं

वांरै अंतस रा

सगळा सपना निरखूं।

मिनख समदरां पार पूगै

अर भूल जावै

अपणायत री बातां

वै राचै नवा-नवा रंग

पण म्हनै लागै-

मिनखपणौ रैवै मिनख रै मांय

वो इज रंग देवै

असैंधा मिनखां री प्रीत,

आपरी अपणायत सूं

साची कैवूं तौ

वा इज व्है मिनखपणै री जीत।

स्रोत
  • सिरजक : गीतिका पालावात कविया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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