मोटरां सूं छायोड़ै केलीफोरनिया में
सूरज ई, हारी सौगन, देवै है सुगन रोगन री
एक बगीचो है बठै
जठै अूगै रगतदारू—फूटरा अर चौरस
अेक दरखत बां मांय सूं अरपित हो
लेनिन नैं...
लेनिन? हे भगवान सगतीधारी!
सगळा नरक अेकै सागै...लेनिन नैं? नईं!
अेक रासो! बांरै खातर! ओफ हो!
सहर कोतवाळ लाल जीभ आळै कूकरियै ज्यूं,
आपरा बटणां बिना, हांफतो, लड़खड़ावतो
अर साच तो आ है कै फाट पड़्यो
नगर पिता रै दफ्तर में, मालक
देसद्रोह! उफ, मॉस्को रो जाळ
हूं ईं रै लारै लागग्यो, थांनैं बतावूं...”
“कईं?”
मेयर गिटतो बोल्यो, “बात घणी आगै बधगी!”
फेर, हड़बड़ाट में “म्हारी सिगार!
हूं गिटग्यो बींनैं!” अर धूजतो
बो गयो अर नदी में कुदग्यो
सायरनां चीखण लागी, अंधारा घोरका भरै,
जनता तळघरां में चिरळाई;
सड़कां माथै, दुकानां अर बैंकां कनैं कर
चमकता काछवां ज्यूं रींगै टैंक
बगावत? साबास, बां बिना सई
कठै है रगतदारू? उखाड़ नाख्यो!
काम तो कुल मिला’र चोखो ई कर्यो
ना रूंख, ना पाटियो—कोरो अेक बेजको।
ना रूंख?
बो तो बठै है! हां बो ई नैचै!
आधी रात रा, नित, बो दीसै
अेम्पायर स्टेट रै माथै, बींरो मुगट
अेक चिलकणो पैरासूट, बो गोळ
अर मोटो तणो सर्चलाइट
फैंकतो
सैंचन्नण किरणां, जीवती अर चमचमावती।
बो रगतदारू तो नईं?
हां, बो है!
मास्को रै अकास माथै, बळती पानड़्यां ज्यूं
सेल्बो दरखत धधकै।
म्हारो हरेक रो निजी
रगतदारू है...बीज म्हे बीजां
मान रा अर साच रा।
म्हारो खैरखवा
अर मनभावतो बेली है रगतदारू
म्हारो भायलो अर मारग रो च्यानणो।
परवा नईं
हूं कठै ई हुवो, सगळी फड़फड़ाट
अर हाको जीवण रो, बीं रा उतार चढ़ाव,
बीं रा जलसा, हांसी अर रीस,
सुखभर ख्यालां में हूं पळ्यो
जाणै अेक तळाई में
रगतदारू री छांव में
पूग सकूं, जद कदे दरद बधै, अर सान्त हरखाणो,
निसरूं, अकल री बाणी सूं फेरूं जीवतो।
रगतदारू नईं है?
हां, बो है!