धरती ने अेक दांणो देवौ
तो वा सैकडू कणूका पाछा देवै
सत राखणीया समाज सूं लेवं उतरौ हो
नोलो नीठ पाछौ देवै
धरती री धणियाय मोटी
कोई री आ औकात कठे?
पण म्हारो लेणौ इणी समाज सूं
नै देणो सैकड़ा जुगां सारू है
इणी खातर
आज रै समाज रा आंकिया टणकेल!
म्हने अेक रोझड़े जिता ही लखावै
ज्यां रो भागणौ नै भिड़करणो
बहकणी ने बुहारणौ
खावणो ने खिडावणी
आपरै अंग ताई पूगै
म्हां खातर अै जतना रा खेत
अेक सावत सिस्टी है
जिण में हूँ आज ने बाबू तो वो
पीढ़ियां लग पांगरे।