जनता बिनै सुणावे, प्रभुजी। जरा'क सुण ल्यो

कद की खड़ौ पुकारै, अब तो

जरांक सुण ल्यो

जबरो स्वराज आयो, दुख मोकलो लियायो

कद तांई भोग्यां जास्यां, प्रभुजी।

जराक सुणल्यो

आजादी आयगी कह छै, रोटी कपड़ो गायब

जनता छै भूखी नागी, प्रभुजी।

जराक गुणल्यो

पीसा को मोल घटगो, चीजां सै होगी मैंहगी

पीसा भी पल्लै कोनै, प्रभुजी!

जराक सुणल्यो

पैदा करैछा अपणो गुजरान भी चलै छो

लेबी कठा सूं आगी, प्रभुजी!

जराक सुणाल्यो

पूंजी को जोर भारी, मिनखां की पूछ कोनै

तड़पै मजूर सारा, प्रभुजी।

जराक सुणल्यो

म्है भी मिनख कुवावां, बोले छै आदिवासी

सुधर्‌या सरै जमारो, प्रभुजी।

जराक सुणल्यो

अछूत हो वा हरिजन, यै नांव अब चुभै छै

औरां जस्या म्है क्यों ना, प्रभुजी!

जराक सुणल्यो

आया गया नै म्है भी, देछां सरण कदै तो

लेतां फिरां छां सरणो, प्रभुजी!

जराक सुणल्यो

मुलाजमां के तांई, हाकम हुआ यै सारा

नेता बण्या फिरै छै, प्रभुजी!

जराक सुणल्यो

धायां पतीजै भूख, रोटी दिखावो पहली

स्वराज कांई चाटां, प्रभुजी!

जराक सुणल्यो

स्रोत
  • पोथी : आधुनिक राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : हीरालाल सास्त्री
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