दिल्ली अेमदाबाद री लेन,

रेल्वे प्लेटफार्‌म री ठौड़,

बैठ्या कीं मोट्यार,

मसखर्‌यां मारता,

बातां उड़ावता,

थोड़ी घणी बातां की—

झांक्यो,

डोकरो भैंसो सो,

धोळा असतरां सूं सज़्योड़ो,

हांफतो थको, उणा रै खने आयौ,

अेक मोट्यार सामी झांक,

बोल्यो,

जनता नी आवैली,

डोकरो उछल्यो,

कीं पतो, कोई नेता हो,

संतरी हो या कोई मंत्री हो?

मूंडा सूं बड़बड़ातो बोल्यो,

थाने आज रा टाबरां नै की ठा पड़ै—

थांकी निजरां आंख्यां सूं आगै नीं, पूटे पड़ै,

आवैली जनता तो,

मोट्यारां नै आई रीस,

डोकरीया नै दोयो भींच,

बोल्या, नीच,

थांसू म्हारै काँई लेणो-देणो,

डोकरीयो बोल्यो—

गलती मंजूर,

थां सगळा बेकसूर,

म्हूं जनता गाड़ी नी समझ्यो,

जद थांको ओळबो सुण्यो,

इतरां में कीं लुगायां बैठो,

अेक बोली वा ‘आई’

सीटीयां बजावती, हिवड़ा धड़कावता—

रोज आवती-जावती, सैर करावती,

पण आज ‘जनता’ नी ‘आई’।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1981 ,
  • सिरजक : देवाराम परिहार ,
  • संपादक : राजेन्द्र शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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