सूंपणौ चावूं

कीं उजास

थारै हाथां मांय

जद चावै, ले लीजै।

इण घोर अंधियारै मांय

रच राख्यौ है म्हैं

कीं उजास सबदां रो

म्हारै सारू!

थारै मारग

कीं कीं चानणो तो

कर दै'ला

जद चाईजै

ले लीजै।

स्रोत
  • सिरजक : संजय आचार्य 'वरुण' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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