खदबदै लावौ

धरती रा गरभ मांय

जोवै कमजोर पड़तां

बारै उमड़’र

सै कीं खतम करण सारू

आफळै

आभै तांई पूगण सारू

मिळ जावै

कोई कमजोर पड़त

बणावै केटर

पण बारै आवतां ईं

बैवण लागै

पिघळ’र नीचै कानी

ईयां

खदबदीजै सबद

म्हारै मगज में

उंतावळ करै

बारै आय’र

कागद माथै मंडण री

सै कीं बदळ देवण सारू

केटर बण जावै

म्हारी कलम

बैवण लागै सबद

पण कीं नीं बदळै

धीरै-धीरै

ठंडा हुय’र जम जावै

सबद।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : वाजिद हसन काजी ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकासण