अगदरा मैं अलगणी पै लटक्या गबूल्या
जाणै डिजनीलैण्ड फेशन सेल।
अर वांकै तळै
र्यां र्यां करतो
धन्ना को छोरो
नकार्या लत्ता कै नांई
दब्यो मसमूंद्यो सो
कह’र्यो होवै जाणै एक
पराणी कहाणी,
आगला बडा’न की।
ज्यानै खातै बांध द्यो
ऊँकै बी सारी जिन्दगी
अस्यां ई रोबो।
अर-
अस्यां ई ढोबो-
मनखजूण नै
क्यूँकै लोगदणी अस्या’न पै
ध्यान दे बी तो क्यूं?
जद-वांसू आच्छ्या
रूपाळा अर चमचमाता
लत्ता
यूं ईं अलगण्या पै लटकर्या होवै
तो फे’र-
पराणी फेसन का गबूल्यांई
सार सम्हाळ की
कुणकै गरज पड़ी है।
हाँ ज्ये ये होता
कोई लत्ता उतार
नौटंकी का
या फेर
अय्यास नामी गरामी का,
या किलयोपेतरा जसी
पछैट्टा अमर सुन्दरी
फतूरी का
तो-
करोड़ाँ मं होतो यांको
मोल भाव।
भल्यांई ये
दो कोड़ी का ई होता
फे’र आपां भी
यांनै हाथां लेता,
पपोळता अर हरकता।
कहता– म्हा बी जाणै छां
धरती सूं जुड़ी हरेक
पछाण को मोल
भल्यांई वा उतरी पुतरी होवै।
यां नै,
“म्हाँ धायां का खासमखास।”
अर फेर आपां-
यूं अलगणी पै न्हं झूलता,
धर्या होता-
कोई अलमारी मं।
पण...?
रैता तो बुज्या...
बेगारी करती पीढ्याँ के नांई।