अेक रात

उतर आयो

म्हारी

पाणी भरियोड़ी

अंजळी में

चाँद!

पाणी होळै-होळै

हिलतो रैयो

चाँद

बून्द-बून्द

घुळतो रैयो,

मन

रै रै्यर

फूलतो रैयो,

म्हैं

कल्पना में

डूबतो रैयो-कै

आज

चाँद नै पी जाऊँला-

देखतै देखतै

अणजाणै बून्द-बून्द

पाणी बैवतो रैयो-

बखत री गळाई'र

चाँदो रैयो

चाँदणी रैयी,

रैयी

पीड़ पीवती

अंजळी-

जिंदगाणी दाईं।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा