अेक रात
उतर आयो
म्हारी
पाणी भरियोड़ी
अंजळी में
चाँद!
पाणी होळै-होळै
हिलतो रैयो
चाँद
बून्द-बून्द
घुळतो रैयो,
मन
रै रै्यर
फूलतो रैयो,
म्हैं
कल्पना में
डूबतो रैयो-कै
आज
चाँद नै पी जाऊँला-
देखतै ई देखतै
अणजाणै बून्द-बून्द
पाणी बैवतो रैयो-
बखत री गळाई'र
न चाँदो रैयो
न चाँदणी रैयी,
रैयी
पीड़ पीवती
अंजळी-
जिंदगाणी दाईं।