निजर नीं आवै

पण समोवर में जगजगता खीरा

आदण ज्यूं उकाळै

मांय री मांय इण वादी नै

बरफ सूं बण्योड़ी इणरी देही रै कांईं व्हैगौ?

ललद्यद!

मुधरी-मुधरी मुळकती

कदैई आवै नी पाछी घूमती-फिरती

बतावण नै

के घणी जेज नीं लागणी है पिघळतां अर

किणी अजांणी दिस बैय-बूय समंदर रौ लूंण बणतां

ललद्यद!

कैवै नीं कदैई अठा रा बासिंदां नै—

''रातौ रंग सेबां नै इज छाजै

अगन री रातास रै लेखै थोड़ीसीक जठरागन इज कांम री

वा अणूंती राती नीं व्है''

कदैई आय नै पूछ नीं—

नेह रौ रातौ रंग छोडगी छी म्हैं

इत्तौ बेगौ इज उणरौ रंग उगटाय दियौ?

अबै घड़ी घड़ी रंगरेजा रौ मूंडौ कांईं ताकौ

वौ तौ अजखुद आपरी कठै मैल नै भूल्योड़ी

तणी हेरै छै

‘रंग दे-रंग दे!’ रौ हेलौ मार्‌यां काम नी सरै

पैली आपरै अंतस रौ खार धोवौ

खार माथै रंग नी बैठै!

ललद्यद!

म्हारी अरज माथै जे थूं आवै तौ

कठैई आंचा री गफलत में

‘कसाब’ बांधणौ मत भूल जाया

नींतर भूंडी व्हैला

आं दिनां री उघाड़ माथाळी इण वादी में!

स्रोत
  • पोथी : हिरणा! मूंन साध वन चरणा ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकास देवल ,
  • प्रकाशक : कवि प्रकासण, बीकानेर
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