तेता जुगा सूं कियोड़ा थारा कौल

छिप गिया सेवट फूलण सूं

म्हारौ बूढौ बाप

आंधी आंख्यां

सौधतौ रैयौ सुगन्ध

भरणी रै बारै

आवण वाळी हर पीढी नै

थूं दियौ थतोबौ

अेक रोटी अर अेक छीण रौ

गाभै री जिम्मेदारी थूं नीं ली

पण हर जीव नै

थूं फगत गाभौ देय सकियौ

किण नै आज

किण नै कालै

किण नै परसूं

रोटी छीण रै हेटै दबियोड़ी पड़ी है

थूं रमतौ रैयौ सरणाटां सूं

जिण रा गवाह

थारी हवेली रा कपाट

अजै तांई बन्द है

अे जूनी हवेली रा बासिन्दा

कदेई तौ नीचै झांक

देख पाणी थारी हदां मांय आय गियौ

मती कर सांग

बोळौ अर आंधौ व्हेण रौ

झांक? नीचै झांक।

पाणी बधतौ जा रैयौ है

सुण इण सुर नै

तोड़ सरणाटौ

वापरग्यौ जिकौ

थारै असवाड़ै-पसवाड़ै

तीस करोड़ देवी-देवतावां आगै

जुड़ता म्हारा हाथ

अर निवतौ म्हारौ माथौ

खटाव सूं बारै व्हेगौ

खोल कोई बारी!

बता

पूजूं किण अेक नै?

नीं भुगतणी चावूं

म्हैं जूण म्हारै बाप री

पूछूं अेक सवाल

क’ हर गळी रौ अन्त

अर हर घर री सिरै खिड़की रौ मूंडौ

क्यूं व्है सरू थारै सूं?

समझणी चावूं म्हैं इण गणित नै

क’ जद पांच रा दस भाग व्हे सकै

तौ अलेखूं कमरां वाळी हवेली

फगत थारी कीकर?

ऊंचायां अदीठ भार

थारौ अर थारी हवेली रौ

फिरां कद तांई

इण मगरै सूं उण मगरै

थूं कद आवै बारै

पाछौ कद बड़ जावै

घुसकाळी मांय

बावड़ नीं लागै

थारी पीढियां री लांठाई अर अणूंताई

म्हारी पीढियां री उणीज रोटी नै

उणीज छीण हेटै

दाब राखी है

जिण रै ओळै-दोळै घूमै डकरेल कुत्ता

नीं भुसै

नीं पकड़ै पींडी

जीभ काढियोड़ा फगत साम्ही देखै

म्हारी पीढियां री पीढियां

धोक देय पाछी आयगी

छीण देवता बणगी

अर थारा कुत्ता पुजारी

मान म्हारा रामा-सामा

इण मिस आय ऊभ बारै

बुलाव कुत्ता नै नैड़ा

घाल दै सांकळ गळै मांय

म्हारै हाथां ऊगगी हळबाणियां

ऊभी अर तीखी

तोड़ देसी छीण नै

अर फेंक देसी अळगी...

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अप्रैल 1980 ,
  • सिरजक : अर्जुनदेव चारण ,
  • संपादक : सत्येन जोशी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर