हूं जूती रै तळियां दायीं
घसीजतो घसीजतो,
मोठां बिचले घुण दांयी
पिसिजतो पिसिजतो
अर घाणी रे बळद री सी
जूणी भोगतो भोगतो
आखतो होग्यो हूं।
अब ई सांकळ सी
सूक्योड़ी देह री आंच में
खुद बुद रट करतै
उखराय ज्योड़ै खीचड़ै में,
जुलमां रा घणा मोटा
अर नईं गळनियां गुठलां नै
पचावण री सगति नईं रेयी है।
जूती र तळै रो मोल
मोठां बीचले घुण रो तोल
अर उखराय जेड़े खीचड़े रो बोल
अब तांई नी समझणिया रो
धिरक जमारो है।
के हुयो
जे आज थारो है?
पण आवण हाळो काल तो म्हारो है।
बखत रै आरै री तीखी धार पर
मिनख रै मांस नै चीर'र
हाडकां ने काठरिणयो
अब थानै चैत्यां ही पार पडेली।
क्यूं के म्हारो लारे खड़यो मिनख,
आरे री तीखी धार
अर बखत री मार स्यूं सावचेत होग्यो है।
थारै जुलमां नै
अब बो नई भोगेलो
जितो म्हारो आणस नई म्हारो मिनख भोग्यो है