मंडता जावै धरती माथै, पग मंडणा इतियास रा।
सूरज उगतौ करै सिलांमी, तारा हंसै अकास रा।
अै हिम्मत रा हाथ जकां मैं, इन्कलाब री अदभुत सगती।
बंटनै रहसी गिणिया दिन में, हमैं मुलक री धन नै धरती।
भूख बेकारी मिटनै रहसी, अै पग है विसवास रा।
मंडता जावै धरती माथै, पग मंडणा इतियास रा।
सूरज उगतौ करै सिलांमी, तारा हंसै अकास रा।
देख मिनख री करड़ी मैणत, सैंचन्नण संचारै है।
मोत्यां जैड़ी निपजै खेती, माटी रूप संवारै है।
बीत चुकी अंधियारी रातां, आया दिन उजियास रा।
मंडता जावै धरती माथै, पग मंडणा इतियास रा।
बांध बणै, नैरां खुद जावै, नवौ धांन मुळकावैला।
नवै देस रौ नवौ मांनखौ, नवा गीतड़ा गावैला।
चारूं कांनी नवी चेतना, नवा कदम है आस रा।
मंडता जावै धरती माथै, पग मंडणा इतियास रा!