मजूर बापू माथै लिखूं

का

मजबूर मा माथै लिखूं

बेबस बेटी माथै लिखूं

का पाछै

भूख सूं बिलखतै

टाबर माथै लिखूं

किण माथै

लिखूं कविता

म्हूं समझ नीं सकूं

घर समाज अर

आखै जग में

जिग्यां- जिग्यां दीखै

दु:ख रा समंदर

कदी सोचूं

थां माथै लिखूं

कदी सोचूं

खुद माथै लिखूं कविता।

स्रोत
  • पोथी : सपनां संजोवती हीरां ,
  • सिरजक : ऋतुप्रिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै