आज थूं मथरा जावै

भलां जा,

म्हैं कद रोकूं।

थारै मंगळ पंथ रो अपसुगन करूं कोनी,

थारा दुपटा नै खेंच-खेंच फाड़ूं कोनी,

निस्चै जांण,

हाथां रै लूम-लूम थारो चन्नण उतारूं कोनी

सनेसो भेजण री उतावळ करूं कोनी

आज थूं मथरा जावै

अेकर कुंज में चाल,

चंपै रा फूल लाई हूं,

सूंघतो जा

माखण मिसरी लाई हूं,

चाखतो जा

दही-रोटी रो सिरावण कर ले

थारै मंगळ तिलक रचाऊं,

जमना रै नीर रो बेवड़ो उठायां

थारै साम्ही आऊं,

थूं सुगन मनायले

गुळ सूं सुगन मनाऊं,

कैवै तो सुगनचिड़ी बण जाऊं,

पग-पग माथै सुगन बधाऊं

थारै गियां पछै

मुरली रै घूघरा बांध सूं

मुगट रै मोती टांक सूं,

माळा में चिरमियां पोव सूं,

जठै-जठै थारै पग रा निसांण है

उठै-उठै हरसिंगार रा फूल धर सूं,

अेकली कुंजां में बस्ती कर सूं

खुदो-खुद बंतळ कर सूं,

म्हारी देह माथै

जथै-जठै थारै हाथां रा निसांण है

उठै-उठै केसर चन्नण लगावसूं

थूं मथरा गियो

तो थारी प्रीत नै

गाढ़ी साथण बणा राख सूं।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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