अबार
बगत लिखै
म्हारै चैरै रै पानां,
जज्बातां रौ
झाळमुख
कीं पळ
आपरै लेखै
मूंडै री कंवळाई सूं
मैळ खावती
कुंपळ सूं
पण कालै
जद
झुरियां रौ राज होसी
कंवळे-कोमल
चीकणै गालां—
तद चैरौ
खुदोखुद
खुली किताब बण जासी
कोई बांचौ
कोई मोड़ौ-तोड़ी
किणी विध
किणी ढब चाहै!