आज है जो राज है पण काल?

काल रो दिन

थारो है म्हारो है, आज’र कालरै बीच

आखी रात अन्धारो है

इणीज अन्धारे री बात सूं डरो मत

सोवण री बात करो मत

काल रो दिन

आज सूं न्याळो है

सेवट अन्धारो ईज नीं

आगे घणो उजाळो है।

परभात री वैळा गावती चिड़ी

गावै है सांझ पड्यांई

नी भूले है चिड़ी

सूरज रो फैर आवणो अर गावणो

पण

जद मिनख भूलै है सूरज रै आथण पाछै

ऊगण री बात

तद् मौत नाचै, काळ गावै,

चोर चिलकावै आपरो रूप

मर जावै है आवण आळा सूरज री धूप।

फागण री फाग बिखरे हैं रंग री ठौड़ खून

सावण—

बरसावै है बारूद

फूल मुळकण री ठौड़ मुरझावै है

अै सगळी बातां अणूती कियौ व्है जावै है? क्यूं व्है जावै है?

मिनख,

एक रात री खातर, आवणियां दिन नै

कियां भूल जावै है?

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : जितेन्द्रशंकर बजाड़ ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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