अजी ईं सरीर को कांईं छ
किराया को मकान छ
आज न तौ काल, खाली करणौ ई छ ईंम कांईं को गरब छ
काल ईं मकान मालिक को कागद आयौ छौ
ऊंन हिचकी मांळ मांडी छ
क मकान जो थांक पास छ ऊंईं खूब बरतजो
कांईं बात की कसर मत करजो, कोई सूं मत डरजो
पण ईंन आपणौ ई समझबा की गलती मत करजो
परायौ जांण कौई पूछै तौ कहता रीजौ—
कि अजी कांईं छ किराया कौ मकान छ
आज न तो काल खाली करणोई छ...
और मकान मालिक न आगै मांडी छ
अगर थाँन म्हारा मकान की
खूब सफाई संभाल राखी तौ
अब की बार थांईं न ऊपरलौ उजासदार चौबारौ दूंगौ
अर थांन मकान में गंदगी राखी तौ
अबकी बार थांईं नीचलौ अंधेरौ भंडार दूंगौ।
ई वास्तै थां सूं कहवै छ महाजन
कहता रहौ चौबीस कलास भजन
अर ऊं सूं सद डरता रौ, ऊंईं सुमरता रौ
अर कोई पूंछै तौ कहता रौ कि
अजी कांई छ किराया को मकान छ
आज न तौ काल खाली करणौई छ...