एक दिन अचाचूक ई
बो उठ्यो।
किंवाड़ खोल्या
बारै निसर्यो
अनै जावतो-जावतो
काई ठा कांई सोच'र
चल्यो गयो ढक’र
बारै सूं कूटौ
अब पूठौ
आ'र बो कूटै है म्हारा किंवाड़
बारणौ बा’रै सूं बन्द है
तो ई
अनै जिकै नै
कै म्हूं नईं खोल सकूं
खोल सकै है
फकत बो ई
म्हूं जाणूं हूँ
कै की ओपचारिक थपकियां पछै
वो पाछो मुड़ जावैलो
अनै कूटो नईं खोलण रो दोस
म्हां माथै लगावैलो
बस,
इण पछै
बो बरी है
लोग म्हनै ई देवैला लाणती
कै म्हूं देखो
उण रै साथै।
किसी’क कोजी करी है।