दूजा रै खातर

जद सोच्यो

खुद आपणै

दिल नै आइनो

बणाणो पड़यो

भूख तिरस खातर

जद सोच्यो

गरीबां रै घरै जाय’र

झांकणो पड़यो

मंजिल पावण खातर

आगै कदम बढायो तो

भीड़ मांय खुद रास्तो

बणाणो पड़यो

खुद खातर कदैई

फैसलो करणो पड़यो

खुद सूं मसवरो

करणो पड़यो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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