घर रै खूंणां में उग्यां सूं
लेय’र दिनांत्यां तांईं,
बैठ्यौड़ी दादीसा अर उणरै
ओळू-दोळू रमती–भमती
म्हनै झट इज समझ में आय गियौ
'कै लुगाईजात खूंणां रै मांय
मोटी हुवै अर खूणां रै
मांय इज रंडापौ काढ़े।
उणरी काया-जूंण री जातरा
खूंणां सूं लेय’र खूंणां ताईंज
हुयां करै ई पूरी।
बालपणै रै मांय निजर सूं
बंचावण नै काळी फिराक 'कै काळी
घाघरी अर रंडापौ मिल्यौ तो
काळी साड़ी अर काळा इज
अल्यूमिनियम रा कातरिया।
इण सूं बारै कठै है लुगाईजात?
जैड़ौ सिखायौ
जो बतायौ
उण सूं बारै है कांई?
बारणै निकळती तो देखती
दुनिया रा कितरा रंग अर ढंग
पण, बालपणै तो मांयतां
निकळवा कोनी दीधी
अर परण्या पछै मांटी।
धीयड़ कीकर जाण सकै है
अणदेख्या रा भोग्या-भाव?
उणरी पेली गुरु मायड़ हुवै
अर दूजी सास
अेक हाथां नींचै राखै अचकै-अचकै
अर दूजी घूंघटा नींचे राखै छानी-छुप्यौड़ी।
अेक बतळाती तो दूजी बरजती
धीयड़ रौ इस्कूल कठै हुवै है?
जो इस्कूल हुवै तो उणमें पढ़ी तो पांचमी
अर घणी पढ़गी तो आठमी
बाकी री पढ़ाई मायड़ अर सासू मां रै जिम्मे
बेटी अर केरड़ी तो वैठी जावै
मायड़ वैठे, सासू वैठे
वैठी ग्यी बेटी-बहू मरजादा राखै
घर री लाज राखै
बहू रै हाथां इज तो दोनूं
घर री लाज हुवै!
आछी बहू वा इज है जा
घर में बणी रेह्वै,
पूत जणै, पडूत्तर नीं देवै,
ओढ़ी-पेहरी रैह्वै,
केण में चालै
थूंक्यौ नीं उलांघै
सेण कीधा सूं समझै
दूजूं तो सगळी बिगडैल बहू हुवै
जी सासरौ लजावै
पीहर नै लजावै!
किंया टूट सकै है
आंख्या अर मनड़ा पै बंध्या
अैड़ा बांधणा...?
कुण जांणै किण सांवण में
आंधी हुई लुगायां
जिण नै आज ताईं आपरै च्यारूं कनी
हर्यो-हर्यो ई दीसै है।
पण, रंग दूजा भी होय सकै
ओ विचार कद जागसी?
घाणी रौ पाड़ौ आंख्या बांध्या
घूमतौ इज जावै।
कद समझैला,
कद खुद नै बरजैला
लुगाईजात आपनै
'कै खूंणां सूं बारै ई
जिंदगी हुयां करै है
जिंदगी फगत कोसिका झिल्ली
रै जीवद्रव्य में इज
कैद कोनी हुवै है...।