धणियाप हो

म्हारौ

पण कब्जौ कर लियो

म्हारी जमीन

मन री जमीन

माथै

घरवाळां

पण म्हूं

मुगत होग्यो

उण जमीन सूं

मन री जमीन सूं

अेकलो

अबै नीं जता सकै

म्हारी जमीन अर मन री जमीन माथै

धणियाप।

मुगत हूं... मुगत हूं...।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : गौरीशंकर ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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