खेल-खेल में
थे आ उतरया
म्हारै मन री राती घाटी
खेल-खेल में
म्हनै सूंप दी
थे थोड़ी-सी आली माटी।
म्हैं माटी ले
घड़्या खिलूणा
भांत-भांत रा सूं’णा-सूं’णा
छोटा-छोटा
मोटा-मोटा
यूं समझौ कीड़ी सूं हाथी।
जळचर
थळचर
नभचर नयारा
दीठ मांय आवै वै सारा
फूल-पांखड़ी भाखर भारा
बेटा-बेटी थारा-म्हारा।
देखौ-
म्हारा करतब देखौ।
म्हैं थांरी निरभ्रांत सहेली
दीखूं हूं म्हैं गैली-गैली।