बेकळू रेत री भीज्योड़ी पुड़तां में

अेकरसी बण जावै जद ऊगण रा आस

वा ऊभी व्है जावै काळ रै

अंतहीण पसराव में।

थे रोप नै देख लौ उणनै कठै'ई

वा सांस रै छेकड़लै सांधै तांई

बण्योड़ी रैवैला सजीव उणी ठौड़

आपरी आडी-डौढी जड़ां रै परवांणै

वा सांभ लेवै मोटी री सामरथ

ऊतरती जावै पुड़तां में संध्यां-पार

वा काळ पड्यां सूखै कोनी

नमी रै सोग में।

रुत री पैली बिरखा पछै

ज्यूं उजाड़ में ऊग आवै

भांत-भांत री घास अर बेलां

कांटीली झाड़ियां री अणचींती पौध

वा आडी नीं फिरै किणी रै आरोह में

जिण रूपाळी कलमां नै

मूंघा घमलां में सजाय राखीजै

घरां री पेड़ियां माथै गरब सूं

वांसू कोई अदावत कोनी राखै वा

आपरी दावैदारी रै नांव

नीरांयत बधती आपूं-आप

फूटती नवी कंपूळां में सान्त

अंतरलीन।

क्यारियां में अंगेज नै ऊगाईज सकै

फूलां री अणगिणत किसमां

नुमायस रै नांव माथै घमलां में

भांत-भांत रा बंदी बावना रूंख

वां सूं लव-लेस ईसकौ नीं राखै

देसी पौध-

उणनै विगसण सारू

नीं व्है सजीला घमलां री दरकार

चाहीजै उणनै खुलै खेत रौ खोळौ

अर सींव माथै थोड़ी-सी निरवाळी

सीली ठौड़ बस सरूआत में।

फगत इत्तौ-सौ सदभाव

कै अजांण में कोई चींथ नीं देवै

वां ऊगता दिनां में उणरी काया

कोई काट नीं देवै निनांण रै ओळावै।

आपरी जमीं सूं बेदखल हुयां

कठै'ई नीं पनपैला इणरी साख

अणचींता बंधणां में बांध्यां

नीं जीवैली खेजड़ी।

स्रोत
  • पोथी : आगै अंधारौ ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : Prtham