जे कोई सबदकोस छापै

आज पछै

तो ‘लुगाई’ रै पर्याय रूप में

राखजो नहर नैं।

एक जैड़ी होवै

दोनां री जूण-गाथा

लुगाई री आंख्यां में पाणी

अर नहर सारू पाणी जिनगाणी

उमर सुदी

झेलणो

खाटणो

अर जद-कद

सूकणै रो खतरो।

नदी री जायी

नहर रो नांव

स्त्रीलिंग हुवणो

संजोग कोनी

खरो सांच है।

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण