भल चिणाया थे कोट गढ किला
ऊपरांकर म्हैल-माळिया
भल सजाया थे कोर कंगूरा घड़्योड़ै भाटै रा
भला थे निरख-निरख आंनै हरखीजो
पण इण साच नैं मत बिसराया कै
अै फगत है भाखर
जग पतवाणिया भावी रा ढमढेर
ज्यांनै खिंडणो ई है अेक दिन
थारी दीठ रै आगै आयोड़ा
जाळा री जात आडै नैं उघाड़ो
मन गवाड़ी री खटकळ खोलो
सुभट रुचैला थांनै
मिनखां रै मन रच्योड़ा म्हैल माळिया
जका भाटां सूं नीं भावां सूं थरपीजै
अर भावां रै भाखल़ सूं ओळखीजै
ज्यांनै चिणिया है सूर कबीर अर मीरां
अंवेर मिनखाजूण सूं
लगावता साच री सीमेंट
मरजाद री बजरी
करम रा पगोथिया
दया रो दरूजो
आ पक्कायत ई जाण लीज्यो थे
कै करम रै चैजारां सूं ई झुकै है
अैड़ा कीरत रा कमठाण
जका जणै-जणै रै काळजै नै ठार
मंड जावै काळजै
बणता काळजई चितराम
बदळ्यां रुत नीं पड़ै मगसा
नीं लोभ सूं झड़ै लैव
नित नूंवै रूप उणियारै
चित्त चढै
बगत रै बैवतै नद नाळां
सूरज अर चांद रा
संगती बण्या
पळकता रैवै
उळीचता बगत रै
काळै अंधार नैं।