काळ-दुकाळ रै दोवणै

अर मेह रै रांडी-रोवणै में

कठैई—

भूखी-तिरसी नीं रैय जावै म्हारी कविता।

कैर-कंटाळा झाड़-बांठकां

अर खींप-सिणियां में अळूझ’र

कठैई—

लूखी-सूकीं नीं रैय जावै म्हारी कविता।

गांव री सूनी गिंगरथ-गोही

अर सरणाटै वाळी रिंधरोही में

कठैई—

आपरो मारग नीं भूल जावै म्हारी कविता।

मरुधर रा सोनलिया धोरां

अर उण सोनलिया धोरां

अर उण माथै मंडती कोरां हेठळ

कठैई—

जीवत-समाध नीं लेय लेवै म्हारी कविता।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : शंकरसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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