खुदाई में

निकळ्यो है तो कांई

हाल जींवतो है

काळीबंगां सै’र

जिण भांत जींवतो है

हाल आपणै मन में

आपणौ बाळपणो

हाल

करावै उनमान

आपरी आबादी रो

आबादी री चै'ल-पै’ल रो

घरदीठ पड़ी

हरमेश काम आवण आळी

अरथाउ जिन्सां रो

जिन्सां माथै

माणसियो परस

परस रै लारै

मोह मनवार

सगळो कीं तो जींवतो है

काळीबंगा रै थेड़ में।

स्रोत
  • पोथी : आंख भर चितराम ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘काग ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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