खोज-खोज पकड़

नेड़ै आंवती मौत री

उडीक मांय

कबूतर री दांयी

आंख मींचणै रो प्रयास

कित्तो दौ’रो है?

बार-बार खुल जावै आंख्या

डर सूं की और चौड़ी होंवती

अर

चौफेर सूं उडती धूड़

पड़ जावै आंख्या मांय

तद आंख मसळ’र

बढ़ती घबराहट सूं मुगत हुवणै

री कोसिस कित्ती छोटी होवै।

जुगां-जुगां सू म्हारै गांव मांय

तो होंवत रैयो है...?

काळ री बेआवाज लाठी

पड़ै फींच्यां पर

पण,

नीं मींचै कबूतर री दांयी

आंख

म्हारै गांव मांय

अब जी रैया है लोग।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थळी – राजस्थानी मांय लोक चेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : भगवान सैनी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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