दिन हाल आँथ्यो ही न्हँ

बीड़ी बुझगी

पाणी गयो पाताळ

चड़साँ रुकगी

बूँळ्या के नीचे बेठ्यो मनख

कुणकी न्हाळे बाट

दिन दूरा छे हाल-अषाढ का।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अंबिका दत्त ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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