काळ पड़ग्यो

पंखेरू भूलग्यो

आभै री उडाण...

दराड़ां चूंचां खोद मेल्ही

दाणो नीं लाध्यो।

बावळा!

बीज में रूंख रो काळजो है

पण सुरजी! पाणी बिना

कांई उगावै?

जा बीं दिसा नै उडज्या...

स्याणा!

थारै तो पांख है

अठै दराड़ां में

भूख बोईजगी

थारो इत्तो

दाणो-पाणी हो।

स्रोत
  • पोथी : उघड़ता अरथ ,
  • सिरजक : सुंदर पारख ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, श्री डूंगरगढ़ ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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