जूण वही है मानवी, राजा हो या रंक।
बखत बणावै मानवी, कदे राजा कदै रंक॥
राजा बण क्यों गरब करै, रकं क्यों छोड़ै आस।
बखत बदळता देर नहीं, बखत को के बिस्वास॥
बात को घाव भरै नहीं, घाव भरै तलवार।
जां कै बात लगै नहीं, वा भूंटी तलवार॥
बिन नारी कै नर नहीं, ना ही नर बिन नारि।
दोन्यां सूं दुनियां बणी, कींकर छोरी खारि॥
पड़ौस पुकार सुणी नहीं, सोयो खूंटी ताण।
तड़कै बारी आयसी, लड़सी कुणकै पाण॥
मेहरबानी मत करो, द्यो मनै अधिकार।
निर्भया जोड़ै हाथ खड़ी, क्यां मैं निमळी नार॥
ऊंडो घाव तलवार को, समय पाय भर जाय।
बिन लोही घाव बात को, रिसतो रिसतो जाय॥
असली नकली फरक घणो, कर पिछाण अर छाड़।
असली बोलै बेधड़क, नकली नीची नाड़॥
बोयो बीज कुचील को, करो आम की आस।
दियो जळायां ही मिलै, बुझायां कियां प्रकास॥
गुड़ गेर्यां मीठो हुवै, लूण गेर्यां खारो।
भलो कर्यां ही भलो हुवै, बुरो कर्यां रस खारो॥