धीरेै-धीरै

बधता-बधता

म्हां करोडां नैं पार करग्या।

आबादी बधती रैयी

संसाधन घटता गया

अर म्हां आंख मीच नैं

बैठा रैया किणी आस में

सरकार रो मूंडो ताकता रैया

कै सरकार म्हारी उद्धारक है।

सरकार कैवै कै

रिपिया रूंखड़ा पे नीं लागै।

नौकरयां रूंखड़ां पे नीं लाग रैयी है।

नवी पीढ़ी भण लिख'र

नौकरी पाछै थाक रैयी है।

रोजगार रा कम औसर

मन में रोळो घालै।

बधती जनसंख्या नैं

किण ढाळै संभाळै।

स्वरुजगार, आपणो हुनर

चोखो अर ठावो है

भणावो-लिखावो पण

टाबरियां नैं बात बतावो।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : कुंजन आचार्य ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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