जियां बाळू सरकै मुठ्ठी स्यूं, बियां ई जिनगाणी।
दादो बोल्या उम्र गई रै, करतां पाणी-पाणी।
माखी दांई फस्या, गिरस्ती
मकड़ी वाळो जाळ।
टूम ठीकरी बेची सगळी,
तोड़ा कियां ई काळ।
भाईचारो रैयो सदां ई, जीव-जंत चाये मरग्या,
बो डाकीड़ो छपनो खाग्यो गाँव खेत अर ढाणी।
छोड्या कोनी भुरट, मोथिया
खेजड़ली रा खोखा।
इण ओदर री आग मांय नै,
बळग्या चोखा-चोखा।
घास-फूस री कांई पूछो भुळस गया सपनां भी,
इण धोरां में बेरो नीं कुण तणग्यो दुख री ताणी।
आज जणां म्हैं देखूं मुड़’र,
रेत रळोड़ा बै दिन।
आँख मांयली बण्या किरकरी,
रड़कै बोला अै दिन।
काळ भाजग्यो जळ सूं डरतौ, इण नै कियां भजावां,
इकलापै री डाकण बैठी, घर-घर मिनखां खाणी।