चूल्है री बेवणी में पसर्योड़ी राख...म्हैं

जद-जद लागै चूल्है नै भूख

राख अंवेरती लकड़्यां

चुग-चुग दिरीजै

गासिया...

ठंडी राख नै लागै ताप

आज रो दिन तो पार पड़्यो

पण सूरज रै चिलकारै

रावण रै तो बा भावण

मनैं सागै लियां

अणबूझ्यो दिन

आय ऊभै म्हारी छाती

अेक और रात री चादर लियां...

नेठाव री नींद कठै?

भूख कियां मिटै

रात बैरण जिद्दण घणी!

स्रोत
  • पोथी : उघड़ता अरथ ,
  • सिरजक : सुंदर पारख ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, श्री डूंगरगढ़ ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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